शारदा सिन्हा भोजपुरी संगीत की दुनिया में एक प्रमुख नाम हैं। उन्हें “बिहार कोकिला” के नाम से भी जाना जाता है, जिनका निधन 72 साल की उम्र में मंगलवार (5 November ) को दिल्ली एम्स में हो गया। शारदा सिन्हा ने न केवल भोजपुरी संगीत को एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया, बल्कि अपने मधुर और सजीव गायन के जरिए भारतीय लोक संगीत को भी समृद्ध किया है। उनकी गायकी में भारतीय संस्कृति की झलक, पारंपरिक धुनों की मिठास और भावनाओं की गहराई दिखाई देती है। शारदा सिन्हा ने अपनी लोकगीतों की आवाज़ से न सिर्फ बिहार और उत्तर प्रदेश में बल्कि पूरे भारत में अपनी पहचान बनाई है।
शारदा सिन्हा का जन्म 1 अक्टूबर 1952 को बिहार के समस्तीपुर जिले में हुआ था। उनका बचपन एक साधारण परिवार में बीता, लेकिन संगीत के प्रति उनका प्रेम शुरू से ही अद्वितीय था। उनकी संगीत शिक्षा का प्रारंभिक आधार उनके परिवार से ही हुआ। उनके पिता की गहरी रुचि संगीत में थी और वे संगीत को अपने बच्चों तक पहुँचाने का कार्य कर रहे थे। शारदा सिन्हा ने संगीत में औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए पटना विश्वविद्यालय से संगीत में स्नातकोत्तर किया और इसके बाद वे भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रति आकर्षित हुईं।
शारदा सिन्हा का संगीत करियर तब शुरू हुआ जब उन्होंने आकाशवाणी और दूरदर्शन पर अपने पहले गीत गाए। उनके गीतों में भोजपुरी संस्कृति की मिठास और सरलता दिखती है, जो आम आदमी के जीवन से जुड़ी होती हैं। शारदा सिन्हा के गीतों में पारंपरिक जीवन की छवि, लोक रीति-रिवाज, और त्योहारों की धूम होती है। उनके गीतों में छठ, होली, विवाह और त्योहारों से संबंधित गीत प्रमुखता से होते हैं।
उनके सबसे प्रसिद्ध गीतों में छठ पूजा के गीत शामिल हैं, जो बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में अत्यधिक लोकप्रिय हैं। छठ के अवसर पर “केलवा के पात पर” और “हो दीनानाथ” जैसे गीत आज भी हर छठ पर्व में सुनाई देते हैं। शारदा सिन्हा के गीतों ने छठ पर्व को एक नई सांस्कृतिक पहचान दी है, और उनकी आवाज़ सुनते ही लोगों के दिलों में छठ पर्व की छवि उभरने लगती है।
शारदा सिन्हा और भोजपुरी लोक संगीत
शारदा सिन्हा ने भोजपुरी लोक संगीत को नई दिशा दी है। भोजपुरी संस्कृति और संगीत को उन्होंने अपने गीतों के माध्यम से देशभर में पहुंचाया। उनके गीतों में पारंपरिक जीवन की सजीवता और त्योहारों की खुशबू होती है। उनके लोकगीत जीवन के विभिन्न रंगों को दर्शाते हैं – चाहे वह त्योहारों की धूम हो, विवाह के गीत हों या जीवन के दुख-सुख।
शारदा सिन्हा की सबसे बड़ी खासियत है कि वे अपनी मधुर आवाज़ से हर लोकगीत को जीवंत कर देती हैं। उनके गीतों में शास्त्रीय संगीत का स्पर्श होता है, जो उनके गीतों को और भी मोहक बना देता है। उन्होंने न सिर्फ पारंपरिक भोजपुरी गीत गाए, बल्कि उन्हें नए अंदाज में पेश किया, जिससे युवा पीढ़ी भी लोकगीतों की ओर आकर्षित हुई।
फिल्मी करियर
शारदा सिन्हा ने कई हिंदी फिल्मों में भी अपने गायन से एक अलग पहचान बनाई है। उन्होंने कई प्रसिद्ध फिल्मों के लिए गीत गाए हैं। इनमें से एक प्रमुख फिल्म है “मैंने प्यार किया” (1989), जिसमें उन्होंने “कहे तोसे सजना” गीत गाया था। यह गीत उस समय बेहद लोकप्रिय हुआ था और शारदा सिन्हा को देशभर में एक नई पहचान मिली थी। इसके अलावा, उन्होंने “हम आपके हैं कौन” (1994) फिल्म में भी एक पारंपरिक विवाह गीत गाया, जो आज भी शादियों में सुना जाता है।
पुरस्कार और सम्मान
शारदा सिन्हा को उनके अद्वितीय योगदान के लिए कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं। 1991 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो भारतीय शास्त्रीय संगीत और लोक संगीत में दिए जाने वाले सर्वोच्च पुरस्कारों में से एक है। इसके अलावा, 2018 में उन्हें भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया, जो भारत का तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। इस पुरस्कार ने उनके संगीत के प्रति समर्पण और योगदान को एक बड़ा मान्यता दी।
छठ पूजा और शारदा सिन्हा का योगदान
छठ पूजा बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, और शारदा सिन्हा ने इस त्योहार को अपने गीतों के माध्यम से एक विशेष पहचान दी है। छठ के गीत गाते हुए उन्होंने इस पर्व की महत्ता को संगीत के जरिए जन-जन तक पहुंचाया है। शारदा सिन्हा के छठ गीतों की मधुरता और भावनात्मक गहराई ने उन्हें हर छठ पूजा का अभिन्न हिस्सा बना दिया है। उनके गीतों के बिना छठ पूजा की कल्पना करना मुश्किल है।
शारदा सिन्हा ने छठ पूजा के गीतों को न सिर्फ गाया, बल्कि उनमें एक नयापन भी जोड़ा। उन्होंने पारंपरिक धुनों और बोलों के साथ नए प्रयोग किए और उन्हें एक नए अंदाज में पेश किया। उनके गीतों में छठ पूजा की धार्मिकता और आध्यात्मिकता के साथ-साथ समाज के हर वर्ग की भावनाओं का समावेश होता है।
लोक संगीत के प्रचार में भूमिका
शारदा सिन्हा ने भोजपुरी लोक संगीत को सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी पहचान दिलाई। उनके गीतों को सुनकर विदेशों में बसे भारतीयों को भी अपने संस्कृति और त्योहारों की याद आती है। उन्होंने कई अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी अपनी प्रस्तुतियों से भारतीय लोक संगीत का मान बढ़ाया है।
उनकी प्रस्तुति में हमेशा एक विशेषता रही है – वे अपनी जड़ों से जुड़ी रहती हैं। चाहे मंच कितना भी बड़ा हो, शारदा सिन्हा हमेशा पारंपरिक पहनावे और शैली में ही प्रस्तुत होती हैं, जो उनकी सादगी और संस्कृति के प्रति उनकी गहरी आस्था को दर्शाता है।
समकालीन संगीत पर प्रभाव
शारदा सिन्हा ने जिस तरह से भोजपुरी लोक संगीत को नए अंदाज में पेश किया, उससे आज के कई कलाकार प्रेरित हुए हैं। उन्होंने लोकगीतों को आधुनिक धुनों के साथ मिलाकर पेश किया, जिससे आज की पीढ़ी भी उन्हें सुनने लगी। उनके संगीत में पारंपरिकता और आधुनिकता का संगम दिखाई देता है।
उनकी गायकी में भारतीय लोक संगीत के साथ-साथ शास्त्रीय संगीत की झलक भी दिखाई देती है। उन्होंने न सिर्फ भोजपुरी में, बल्कि मैथिली, मगही और हिंदी में भी कई गीत गाए हैं। उनके गीतों में विविधता और गहराई होती है, जो श्रोताओं को अपनी ओर आकर्षित करती है।
व्यक्तिगत जीवन और विरासत
शारदा सिन्हा का जीवन संगीत और संस्कृति के प्रति समर्पण का प्रतीक है। उनके निजी जीवन में भी संगीत का एक विशेष स्थान रहा है। उन्होंने अपने संगीत करियर के साथ-साथ अपने परिवार और सामाजिक जिम्मेदारियों को भी बखूबी निभाया है।
शारदा सिन्हा ने अपने जीवन में कई संघर्षों का सामना किया, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उनकी गायकी में संघर्षों की छाप भी दिखाई देती है, जो उनके गीतों को और भी गहरा और भावनात्मक बना देती है। उनके गीतों में समाज के हर वर्ग की भावनाएं व्यक्त होती हैं, जिससे वे एक लोकगायिका के रूप में बेहद लोकप्रिय हो गईं।
निष्कर्ष
शारदा सिन्हा भारतीय लोक संगीत की धरोहर हैं। उन्होंने न सिर्फ भोजपुरी संगीत को ऊंचाइयों तक पहुंचाया, बल्कि भारतीय लोक संगीत को भी समृद्ध किया है। उनकी आवाज़ में एक अनोखी मिठास और सजीवता है, जो श्रोताओं के दिलों को छू लेती है।
शारदा सिन्हा का संगीत जीवन के हर पहलू को छूता है – त्योहारों की खुशियाँ, जीवन के संघर्ष, और समाज की भावनाएँ। उनके योगदान को सदैव याद रखा जाएगा और उनके गीत भारतीय संगीत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाए रखेंगे।